लेखनी प्रतियोगिता -11-Jun-2022

वो धीमे धीमे स्वर से 
खुद को समझाते हुए
गुजरे दिनो की यादों को
आँखो में सजाते हुए 
कुछ अपने कुछ सपने 
दिल में बसाते हुए 
चल दी  पिया के घर 
बाबुल की दुनिया भूलाते हुए

वो दुल्हन थी बड़ी चुपचाप सी
नजाने क्या थी चली सोचती
आँखो में पिता से बिछड़ने के
आँसू ,आँचल में ममता समेटे
कुछ यादगार लम्हों की कोई
नयी कहानी बनाते हुए …..,

पिया का घर मंज़िल है नयी
या कोई अंजान ख़्वाब है
ये डगर है प्रीत की 
या कोई रीत में लिपटा 
 गुजरता हृदय का राग है 

जो पिता साया बना
माँ प्रेम की प्रतिमा बनी
उन्हें छोड़ कर वो कली
अब फूल बन ने चली
ये अजब संजोग है
धरा का गगन से वियोग है
बारिश की बूँदो की तरह
वो यंहा हर मौसम आएगी
महका के पिता का ये घर
पिया का घर सजाती जाएगी 

गरिमा बनी जो भाई की 
वो लाज पति की बन रही
अपने जीवन के सफ़र में
नए पड़ाव चुन रही ..,,,,,

जो दिल को उसके कह रहा
वो नया परिवेश है 
सब नही बदला मगर
किरदार वो बदले जा रही

दिल बड़ा बेचैन है 
सौच में डूबा हुआ
जो कदम वो चल रही
वो उसे दूर ले जाएँगे
पिता से पति के घर 
में फ़ासले बढ़ाएँगे 

गुम जाएगी उसकी ख़ुशी
अपने भी अब मेहमान बुलाएँगे
अब उसके सफ़र की हर डगर 
पति के नाम से जाने जाएँगे 

अंजान सा ये वियोग है 
दिल को हिस्सों में बाटे हुए
पिता की जो थी परी कभी
पति की पत्नी उसे बनाते हुए 
ये दुल्हन नयी दुनिया बसाएगी

ये ग़ज़ब का रूप है 
मोह में लिपटा हुआ 
माँ का जो ममत्व था
अब बहू बन जाएगा 
जो कभी छोटी सी थी
अब जीमेदारिया उठाएगी
माँ की बताई हर  बात को
दिल से वो दौहराएगी 
जुदा भले किरदार है
पर कहानी है वही 
वो आज भी पिता के लिए
बस ख़ुशी लाएगी 
जो बनी है आज दुल्हन
कल वो भी घर बनाएगी 
अपने सरल स्वभाव से  
सबको एक साथ लाएगी            


 Tamanna

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19 Comments

Seema Priyadarshini sahay

12-Jun-2022 05:58 PM

बेहतरीन रचना

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Thankyu aap sabhi ne poem pasand ki ,

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Gunjan Kamal

12-Jun-2022 08:44 AM

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति 👌👌

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